नव वर्ष की शुभकामनाएं!

आप सब को सपरिवार नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं!
एक पिछली पोस्ट में मैंने एक मर्मस्पर्शी राजस्थानी लोकगीत का ऑडियो पोस्ट किया था और राजस्थान के श्रोताओं से उसके शब्द (lyrics) और अर्थ बताने का अनुरोध किया था. किशोर चौधरी ने आगे बढ़कर इस गीत के शब्द, अर्थ और भाव ईमेल से भेजे हैं. मैं उनका आभारी हूँ और गीत के बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ. साथ ही गीत का ऑडियो एक बार फिर से रख रहा हूँ ताकि पहली बार में भावार्थ न समझने वाले मेरे जैसे श्रोता भी इस बार इस हृदयस्पर्शी कारुणिक गीत को पूर्णता से अनुभव कर सकें.




यहाँ से आगे किशोर चौधरी के शब्द:

ये लोकगीत एक नवविवाहिता गा रही है, वह माँ और भाईयों से मर्मस्पर्शी शिकायत कर रही है कि सात भाईयों में एक बहन थी फिर भी मुझे इतनी दूर धोरे में अर्थात सुनसान स्थान पर क्यों ब्याह दिया है. यहाँ का जीवन कठिन है पहनने को जूते नहीं हैं और सर ढकने को कपड़ा और ससुराल वाले पीहर जाने के लिए गाड़ी का किराया भी नहीं देते हैं . वह आक और पीपल का आभार व्यक्त कर रही है कि उसके पत्तों के कारण वह पाँव और सर ढक पाती है.

सातों रे भाईड़ों री अम्मा एक बेनड़की
ओ माँ मैं सात भाईयों की एक बहन हूँ
अळगी क्यों, मिन्हों धोरुडे में क्यों परणाई रे अम्मा
दूर क्यों, मुझे धोरे में क्यों ब्याह दिया है
मिन्हों देवे क्यों नी गाडकी रो भाड़इयो
मुझे देते क्यों नहीं गाड़ी का भाड़ा (किराया) भी

पगे रे उभराणी बीरा थारोड़ी बेनड़की
भाई तुम्हारी बहन नंगे पाँव है
पगे रे उभराणी अम्मा एक बेनड़की
नंगे पाँव है माँ, एक बहन
अळगी क्यों, मिन्हों धोरुडे में क्यों परणाई रे अम्मा
दूर क्यों, मुझे धोरे में क्यों ब्याह दिया है
मिन्हों देवे क्यों नी गाडकी रो भाड़इयो
मुझे देते क्यों नहीं गाड़ी का भाड़ा भी

पगे रे उभराणी बीरा थारोड़ी बेनड़की
भाई तुम्हारी बहन नंगे पाँव है
अरे बांधों हूँ आकडिये वाला पोन हूँ अम्मा
मैं पांवों में आक के पत्ते बांधती हूँ , माँ
बांधों रे आकडिया तान्जां पोन रे अम्मा
ओ आक तेरे पत्ते बांधती हूँ, ऐ माँ
मिन्हों देवे क्यों नी गाडकी रो भाड़इयो
मुझे देते क्यों नहीं गाड़ी का भाड़ा भी

सिरडे उगाड़ी बीरा थारोड़ी बेनड़की
नंगे सिर है भाई तुम्हारी बहन
सिरडे उगाड़ी अम्मा एक बेनड़की
नंगे सिर है माँ, एक बहन
ओढ़ो रे पीपळीये वाला पोन रे अम्मा
पीपल के पत्ते ओढ़ती हूँ अमा
ओढ़ो रे पीपळीया तांजा पोन रे अम्मा
ओ पीपल तेरे पत्ते ओढ़ती, ऐ माँ
मिन्हों देवे क्यों नी गाडकी रो भाड़इयो
मुझे देते क्यों नहीं गाड़ी का भाड़ा भी

God Bless You Kishore!

अण्डा - बाबा नागार्जुन

बाबा नागार्जुन अपनी तेजस्वी रचनाओं और उनमें निहित देशव्यापी समस्याओं के कुशल चित्रण के लिए जाने जाते हैं. यहाँ प्रस्तुत है पचास के दशक में रची उनकी एक रचना "अंडा"



अण्डा - बाबा नागार्जुन

पाँच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया,बाकी रह गये चार

चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गये वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच गये दो

दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया एक

एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झन्डा
पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा

सम्बंधित प्रविष्टियाँ:
1. बाबा नागार्जुन की तेजस्वी रचना मन्त्र (ॐ)
2. एक दुर्लभ और मार्मिक राजस्थानी लोकगीत सुनें

एक अलग सा राजस्थानी लोकगीत

यूरोप के रोमा (जिप्सी) बंजारों के बारे में बने एक वृत्तचित्र में राजस्थान के बंजारों का गाया हुआ यह लोकगीत दो रूपों में सुनने को मिला था. शब्द के बोल कुछ-कुछ समझ में आते हैं और ऐसा लगता है जैसे कि सात भाइयों की एक अकेली बहन की किसी लोककथा का ज़िक्र हो रहा है. जब पहली बार सुना तब से ही मुझे इस गीत का अर्थ जानने की उत्सुकता रही थी. आप भी सुनिए.  अर्थ समझ न भी आये तो भी शायद सुनना अच्छा लगे. यदि आप में से किसी को समझ आये तो कृपया टिप्पणी में या ईमेल द्वारा बताने की कृपा करें. धन्यवाद!

[अपडेट: किशोर चौधरी के सौजन्य से इस गीत के बोल मिल गये हैं। पढने के उत्सुक जन यहाँ क्लिक करें। धन्यवाद किशोर!]

सातों रे - खंड १


सातों रे - खंड २

रूठ के हमसे कहीं [संगीतकार के स्वर में - १]

हिन्दी फिल्मों में गायक-गायिका तो गाते ही हैं। यही काम है उनका। कभी कभी नायक-नायिका भी गा लेते हैं। नूतन से लेकर शबाना आज़मी तक, सुलक्षणा पंडित से लेकर सलमा आगा तक और श्वेत-श्याम अभिनेताओं से लेकर आमिर खान तक बहुत से अभिनेता-अभिनेत्री गाते रहे हैं।

गाने वालों की एक तीसरी श्रेणी भी है। और वह बनती है जब कि संगीतकार स्वयं ही गाते हैं। सचिन दा, हेमंत कुमार, रवि, रवीन्द्र जैन, जगजीत सिंह जैसे संगीतकारों को तो हमने खूब सुना है। आज सुनते हैं जतिन-ललित की जोडी वाले जतिन को "जो जीता वही सिकंदर" के इस कम प्रचलित गीत में। गीत के बोल हैं, "रूठ के हमसे कहीं ..."

तो गूँज ऐ मेरे दिल की आवाज़ तू

आप सब ने मेरी पिछली पोस्ट में इब्न-इ-इंशा की कविता को पसंद किया इसके लिए आपका आभारी हूँ और उत्साहित होकर अपनी पसंद की एक और कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसको रचा है "राही मासूम रज़ा" ने। १९८९ में जलाल आगा द्वारा निर्मित फिल्म गूँज में इस रचना को अमर गायक मन्ना डे ने बिद्दू के निर्देशन में गाया था। यह अनूठा गीत आजकल आसानी से सुनने को नहीं मिलता है इसलिए एक ऑडियो फाइल भी अपलोड कर रहा हूँ। अगर भारत की एक पुरानी रिकार्ड कम्पनी का संवाद बोलूँ तो, "(audio) quality compromised for sake of nostalgia."

जो गूंजे वही दिल की आवाज़ है
तो गूँज ऐ मेरे दिल की आवाज़ तू
जो गूंजे वही दिल की आवाज़ है
तो गूँज ऐ मेरे दिल की आवाज़ तू

गले कट रहे हैं जुबां के लिए
लगी आग गिरते मकां के लिए
सवाल एक ही है जहाँ के लिए
ज़मीं क्यों लुटे आसमान के लिए

कहो कुछ जुबां पर अगर नाज़ है
कहो कुछ जुबां पर अगर नाज़ है

जो गूंजे वही दिल की आवाज़ है
तो गूँज ऐ मेरे दिल की आवाज़ तू
जो गूंजे वही दिल की आवाज़ है
तो गूँज ऐ मेरे दिल की आवाज़ तू

ये चुपचाप बर्दाश्त करना है जुर्म
खुद अपनी नज़र से उतरना है जुर्म
कहो ये कि दुश्मन से डरना है जुर्म
बिना कुछ कहे घुट के मरना है जुर्म
कि मरना भी जीने का अंदाज़ है
कि मरना भी जीने का अंदाज़ है

जो गूंजे वही दिल की आवाज़ है
तो गूँज ऐ मेरे दिल की आवाज़ तू
जो गूंजे वही दिल की आवाज़ है
तो गूँज ऐ मेरे दिल की आवाज़ तू

जो गूंजे वही दिल की आवाज़ है
तो गूँज ऐ मेरे दिल की आवाज़ तू
जो गूंजे वही दिल की आवाज़ है
तो गूँज ऐ मेरे दिल की आवाज़ तू

कहो ये कि मंजिल से तुम दूर हो
खुदा की ज़मीं पर मजबूर हो
कहो ये कि ज़ख्मों से तुम चूर हो
खुद अपनी ही ख़बरों के मजदूर हो
तुम्हारी खामोशी का क्या राज़ है
तुम्हारी खामोशी का क्या राज़ है

आचार्य विनोबा भावे के गीता प्रवचन - हिन्दी




लगभग एक वर्ष के प्रयत्न के बाद आचार्य विनोबा भावे के गीता प्रवचन का हिन्दी अनुवाद आपके सम्मुख प्रस्तुत है। प्रस्तावना और अठारह अध्याय यहाँ आपके श्रवण-सुख के लिए उपलब्ध है। यह सारा काम श्रीयुत भीष्म कुमार देसाई की प्रेरणा और अथक प्रयत्नों से हुआ है। आदरणीय देसाई जी ने स्वयं गुजराती अनुवाद का वाचन किया है। अंग्रेजी अनुवाद और मूल मराठी वाचन का कार्य अभी प्रगति पर है।

आवाज़ अनुराग शर्मा की परंतु गीता से उपजे श्रेष्ठ विचार आचार्य विनोबा भावे के ही हैं।

तिआनमान चौक, बाबा नागार्जुन और हिंदी फिल्में

चीन के तिआनमान चौक पर ४ जून १९८९ को हुए नरसंहार के बारे में लिखते समय बाबा नागार्जुन की पंक्ति अनायास ही ध्यान आ गयी थी. उस पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ने उसी गीत की कुछ और पंक्तियाँ भी लिख दी थीं, उनका बहुत आभारी हूँ.


वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" बाबा नागार्जुन
साहित्य में मेरा कोई विशेष अध्ययन नहीं है. जो किताबें मिलती हैं उन्हें पढने में विशेष रूचि नहीं होती है और जिन किताबों को ढूंढ रहा होता हूँ वे दुर्लभ होती जा रही हैं. फिल्मों के बारे में भी मेरा अनुभव कुछ अलग ही तरह का है. यदि कोई फिल्म मुझे पसंद आ जाए तो यह तय है कि वह फ्लॉप ही रही होगी. फिर भी अच्छी और ज़रा हट के बनी फिल्मों को देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाता हूँ भले ही मेरे देखने भर से उस फिल्म का भविष्य खतरे में पड़ जाए. अच्छी फिल्में सदा ही बनती रही हैं - फर्क बस इतना है कि उन्हें देख पाने के लिए नसीब अच्छा होना चाहिए. पिछले कुछ वर्षों में भी कई लाजवाब फिल्में देखने को मिलीं. उन्हीं में से एक थी स्ट्रिंग्स. फिल्म अच्छी थी - कथावस्तु, पृष्ठभूमि, चित्रांकन और संगीत सभी दृष्टियों से. जो लोग भारत में रहते हुए भारतीय संस्कृति के मूल से कट चुके हैं उन्हें फिल्म की कथा अपारंपरिक लग सकती है - थोडा असहज भी कर सकती है. निर्देशन के बाद इस फिल्म में सबसे सशक्त पक्ष था संगीत का. असम के जुबीन गर्ग (बोडोठाकुर) के संगीत में सभी गाने मुझे इतने सुन्दर लगे कि मैंने शायद एक-एक गीत को हज़ार बार सुना होगा. संजय झा के निर्देशन में महाकुम्भ की पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म में जब मैंने बाबा नागार्जुन जी की वह रचना "मंत्र" सुनी तभी से इसके बारे में और जानने की इच्छा हुई. पता लगा कि बाबा ने यह रचना १९६९ में लिखी थी और १९७७ में इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था.

शायद आपको पसंद आये, इसी उम्मीद से उसका ऑडियो लगा रहा हूँ. गीत की जानकारी: स्वर: अंगराग मोहंता, सौरेन रॉयचौधरी और जुबीन गर्ग, रचयिता: बाबा नागार्जुन, फिल्म: स्ट्रिंग्स - बाउंड बाइ फेथ


मंत्र (ॐ) बाबा नागार्जुन (पूरी रचना)

ॐ श‌ब्द ही ब्रह्म है... ॐ श‌ब्द् और श‌ब्द और श‌ब्द
ॐ प्रण‌व‌, ॐ नाद, ॐ मुद्रायें, ॐ व‌क्तव्य‌, ॐ उद‌गार्, ॐ घोष‌णाएं
ॐ भाष‌ण‌... ॐ प्रव‌च‌न‌...
ॐ हुंकार, फ‌टकार, ॐ शीत्कार
ॐ फुस‌फुस‌, फुत्कार, ॐ चीत्कार
ॐ आस्फाल‌न‌, इंगित, ॐ इशारे
ॐ नारे और नारे और नारे
ॐ स‌ब कुछ, स‌ब कुछ, ॐ स‌ब कुछ
ॐ कुछ न‌हीं, कुछ न‌हीं, ॐ कुछ न‌हीं
ॐ प‌त्थ‌र प‌र की दूब, ख‌रगोश के सींग
न‌म‌क, तेल, ह‌ल्दी, जीरा, हींग
ॐ कोय‌ला, इस्पात, ॐ पेट्रोल‌
ॐ ह‌मी ह‌म ठोस‌, बाकी स‌ब फूटे ढोल‌
ॐ मूस की लेड़ी, क‌नेर के पात
ॐ डाय‌न की चीख‌, औघ‌ड़ की अट‌प‌ट बात

ॐ इद‌मान्नं, इद‌मापः इद‌म‌ज्यं, इदं ह‌विः
ॐ य‌ज‌मान‌, ॐ पुरोहित, ॐ राजा, ॐ क‌विः
ॐ क्रांतिः क्रांतिः क्रांतिः सर्वत्र क्रान्ति:
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः सर्वत्र शांतिः
ॐ भ्रांतिः भ्रांतिः भ्रांतिः सर्वत्र भ्रांतिः
ॐ ब‌चाओ ब‌चाओ ब‌चाओ
ॐ ह‌टाओ ह‌टाओ ह‌टाओ
ॐ घेराव घेराव घेराव
ॐ निभाओ निभाओ निभाओ

ॐ द‌लों में एक द‌ल अप‌ना द‌ल
ॐ अंगीक‌रण, शुद्धिक‌रण, राष्ट्रीयक‌रण
ॐ मुष्टिक‌रण, तुष्टिक‌रण‌, पुष्टिक‌रण
ॐ ऎत‌राज़‌, आक्षेप, अनुशास‌न
ॐ ग‌द्दी प‌र आज‌न्म व‌ज्रास‌न
ॐ ट्रिब्यून‌ल‌, आश्वास‌न
गुट‌निरपेक्ष, स‌त्तासापेक्ष जोड़‌-तोड़‌
ॐ ब‌क‌वास‌, ॐ उद‌घाट‌न‌
ॐ मारण मोह‌न उच्चाट‌न‌
ॐ छ‌ल‌-छंद‌ मिथ्या होड़‌म‌होड़

ॐ काली काली काली म‌हाकाली
ॐ मार मार मार, वार न जाय खाली
ॐ अप‌नी खुश‌हाली
ॐ दुश्म‌नों की पामाली
ॐ मार, मार, मार, मार
ॐ अपोजीश‌न के मुंड ब‌नें तेरे ग‌ले का हार
ॐ ऎं ह्रीं क्लीं हूं आंग
ॐ ह‌म च‌बायेंगे तिल‌क और गाँधी की टांग
ॐ बूढे की आँख, छोक‌री का काज‌ल, तुल‌सीद‌ल
बिल्व‌प‌त्र, च‌न्द‌न, रोली, अक्ष‌त, गंगाज‌ल
ॐ शेर के दांत, भालू के नाखून‌, मरघट का फोता
ॐ ह‌मेशा ह‌मेशा राज क‌रेगा मेरा पोता

ॐ छूः छूः फूः फूः फ‌ट फिट फूट
ॐ श‌त्रुओं की छाती पर लोहा कूट
ॐ भैरों, भैरों, ॐ ब‌ज‌रंग‌ब‌ली
ॐ बंदूक का टोटा, पिस्तौल की न‌ली
ॐ डॉल‌र डॉल‌र, ॐ रूब‌ल रूब‌ल, ॐ पाउंड पाउंड
ॐ साउंड साउंड, ॐ साउंड साउंड, ॐ साउंड साउंड

ॐ ध‌रती, ध‌रती, ध‌रती, ध‌रती, ध‌रती, व्योम‌, व्योम‌, व्योम‌
ॐ अष्ट‌धातुओं की ईंटो के भ‌ट्टे
म‌हाम‌हिम, म‌हम‌हो उल्लू के प‌ट्ठे
ॐ दुर्गा, दुर्गा, तारा, तारा
इसी पेट के अन्द‌र स‌मा जाय स‌र्व‌हारा
ह‌रिः ॐ त‌त्स‌त‌!
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ऑनलाइन हिन्दी कवि सम्मेलन सुनिए

नमस्कार!

हिंद युग्म की भगिनी संस्था आवाज़ पर हर महीने के अन्तिम रविवार को एक ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन होता है जिसमें दुनिया भर के कवि अपनी हिन्दी कविताओं का पाठ करते हैं। पहले अंक के संचालक ऑस्ट्रेलिया से श्री हरिहर झा थे। जबकि दूसरे से छठे अंक तक इस ऑनलाइन आयोजन का संचालन किया है हैरिसबर्ग, अमेरिका से डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने।

इस बार का कवि सम्मलेन कई मायनों में अनूठा है. फरवरी माह के इस कवि सम्मलेन के माध्यम से हम श्रद्धांजलि दे रहे हैं महान कवयित्री और स्वतन्त्रता सेनानी सुभद्रा कुमारी चौहान को जिनकी पुण्यतिथि १५ फरवरी को होती है। इसके साथ ही यह मौसम है वसंत का। ऐसे वासंती समय में हमने इस कवि सम्मलेन में चुना है छः कवियों को, दो महाद्वीपों से, चार भावों को लेकर। साथ ही आगे रहने की अपनी परम्परा का निर्वाह करते हुए इस बार हम लेकर आए हैं अनुराग शर्मा के सद्य-प्रकाशित काव्य संकलन "पतझड़ सावन वसंत बहार" में से कुछ चुनी हुई कवितायें। तो आईये आनंद लेते हैं चार मौसमों का इस बार के कवि सम्मलेन के माध्यम से। इन सुमधुर रचनाओं का आनंद उठाईये।


आप भी इस कवि सम्मेलन में भाग ले सकते हैं। आपको बस इतना करना है की अपनी स्वरचित कविता अपनी ही आवाज़ में रिकॉर्ड करके उसे ईमेल podcast.hindyugm@gmail.com पर भेजें। कवितायें भेजते समय कृपया ध्यान रखें कि वे १२८ kbps स्टीरेओ mp3 फॉर्मेट में हों और पृष्ठभूमि में कोई संगीत न हो।

रिकॉर्डिंग करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है। हिन्द-युग्म पर इस बारे में एक एक पोस्ट रखी है, जिसकी मदद से आप सहज ही रिकॉर्डिंग कर सकेंगे। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें।

पुराने अंक सुनने के लिए कृपया नीचे के लिंक क्लिक करें:
फरवरी अंक (फरवरी २००९ Kavi Sammelan)
सातवाँ अंक (जनवरी २००९)
छठा अंक (दिसम्बर २००८)
पाँचवाँ अंक (नवम्बर २००८)
चौथा अंक (अक्टूबर २००८)
तीसरा अंक (सितम्बर २००८)
दूसरा अंक (अगस्त २००८)
पहला अंक (जुलाई २००८)

आवाज़ पर डॉक्टर मृदुल कीर्ति का साक्षात्कार पढने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये।


आपके सुझावों का स्वागत है।