वीरों का कैसा हो वसंत - सुभद्रा कुमारी चौहान

आइये सुनते हैं तेजस्वी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की रचना "वीरों का कैसा हो वसंत" डॉ. मृदुल कीर्ति के स्वर में



Dr. Mridul Kirti - डॉ. मृदुल कीर्ति
आ रही हिमालय से पुकार,
है उदधि गरजता बार-बार,
प्राची पश्चिम भू-नभ अपार,

सब पूछ रहे हैं दिग्‌-दिगन्त,
वीरों का कैसा हो वसंत?
फूली सरसों ने दिया रंग,
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग,

वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग,
हैं वीर वेश में किन्तु कन्त,

वीरों का कैसा हो वसंत?

भर रही कोकिला इधर तान,
मारू बाजे पर उधर गान,
है रंग और रण का विधान,
मिलने आए हैं आदि अंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

गल बाहें हों या हो कृपाण,
चल चितवन हो या धनुषबाण,
हो रस विलास या दलित त्राण,
अब यही समस्या है दुरंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग?
ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग जाग,
बतला अपने अनुभव अनन्त!

वीरों का कैसा हो वसंत?

हल्दी घाटी के शिला खंड,
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड,
राणा सांगा का कर घमंड,
दे जगा आज स्मृतियां ज्वलंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

भूषण अथवा कवि चन्द नहीं,
बिजली भर दे वह छंद नहीं,
है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं,
फिर हमें बतावे कौन हंत!

वीरों का कैसा हो वसंत?

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* सुभद्रा कुमारी चौहान - विकिपीडिया
* वीरों का कैसा हो वसंत - शब्द
* सुभद्रा कुमारी चौहान - सेनानी कवयित्री की पुण्यतिथि
* 1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
* डॉ. मृदुल कीर्ति
* मृदुल कीर्ति - कविता कोश
* डॉ॰ मृदुल कीर्ति का साक्षात्कार

2 comments:

  1. rajendra sharma Says:

    atyant madhur

  2. बेनामी Says:

    क्या इसका हिंदी में meaning मिल जायेगा