हिन्दी और उर्दू के महान कथाकार कृश्न चन्दर का जन्मदिन 23 नवंबर 1914

हिन्दी और उर्दू के प्रसिद्ध लेखक, पद्मभूषण से सम्मानित साहित्यकार श्री कृश्न चन्दर का जन्मदिन आज के दिन 23 नवंबर 1914 को वजीराबाद, ज़िला गूजरांवाला (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनका बचपन पुंछ (जम्मू और कश्मीर) में बीता। उन्होने अनेक कहानियाँ और उपन्यास लिखे हैं। उनके जीवनकाल में उनके बीस उपन्यास और 30 कथा-संग्रह प्रकाशित हो चुके थे। उन्होने रेडियो नाटक और फिल्मी पटकथाएँ भी लिखीं। 1973 की प्रसिद्ध फिल्म मनचली के संवाद उन्ही के लिखे हुये थे। उनकी भाषा पर डोगरी और पहाड़ी का प्रभाव दिखता है। उनकी कहानी  पर धरती के लाल (1946) और शराफत (1970) जैसी फिल्में बनीं। उनका निधन 8 मार्च 1977 को मुंबई में हुआ था। उस समय वे "बराए बतख़" नामक व्यंग्य की पहली पंक्ति लिख चुके थे।  

1969 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। उनका उर्दू उपन्यास, "एक गदहे की सरगुज़श्त" अपने समय में बहुत पसंद किया गया था। "एक गदहे की सरगुज़श्त" का वाचन रेडियो प्लेबैक इंडिया पर अनुराग शर्मा की आवाज़ में चार खंडों में सुना जा सकता है।

एक गधे की वापसी - 1


एक गधे की वापसी - 2


एक गधे की वापसी - 3


एक गधा नेफा में


बोलती कहानियाँ पर सुनें

यह तो कोमलांगियों की मजबूरी है कि वे सदा सुन्दर गधों पर मुग्ध होती हैं
~ पद्म भूषण कृश्न चन्दर (1914-1977)

हर सप्ताह रेडियो प्लेबैक इंडिया पर सुनिए एक नयी कहानी

मैं महज़ एक गधा आवारा हूँ।
( "एक गधे की वापसी" से एक अंश)
उनकी प्रतिनिधि रचनाएँ निम्न हैं:
उपन्यास: एक गधे की आत्मकथा, एक वायलिन समुंदर के किनारे, एक गधा नेफ़ा में, तूफ़ान की कलियाँ, कार्निवाल, तूफ़ान की कलियाँ, एक गधे की वापसी, गद्दार, सपनों का क़ैदी, सफ़ेद फूल, तूफ़ान की कलियाँ, प्यास, यादों के चिनार, मिट्टी के सनम, रेत का महल, कागज़ की नाव, चाँदी का घाव दिल, दौलत और दुनिया, प्यासी धरती प्यासे लोग, पराजय, जामुन का पेड़
कहानी: साधु, पूरे चाँद की रात, पेशावर एक्सप्रेस

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4 comments:

  1. पुरुषोत्तम पाण्डेय Says:

    साहित्य की इस विभूति को बहुत खूबसूरत शब्दों में आपने फिर याद दिलाया है. धन्यवाद.

  2. पुरुषोत्तम पाण्डेय Says:

    साहित्य की इस विभूति को बहुत खूबसूरत शब्दों में आपने फिर याद दिलाया है. धन्यवाद.

  3. प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' Says:

    कुछ रचनाएं इनमें से मैंने भी पढ़ी है और उनका कायल हूँ...बहुत बहुत बधाई...

    नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

  4. Rahul Dangwal Says:

    जामुन का पेड़ पढ़ी थी, तब से पढ़ रहा हूं इस विरासत को।