इब्न ए इंशा के जन्मदिन पर

सब माया है, सब चलती फिरती छाया है
तेरे इश्क़ में हमने जो खोया है जो पाया है
जो तुमने कहा और फैज़ ने जो फरमाया है
सब माया है, सब माया है।


आधुनिक कवियों में इब्न-ए-इंशा की रचनायें मुझे बहुत प्रिय हैं। अगर आज वे ज़िन्दा होते तो मैं एक सवाल ज़रूर पूछता कि जिन्ना जैसा संकीर्ण और स्वार्थी राजनीतिज्ञ पाकिस्तान गया तो गया, इंशा जैसे कवि क्या सोचकर पाकिस्तान गये? रेडिओ पाकिस्तान की नौकरी? कारण जो भी हो, उनके इस व्यक्तिगत निर्णय से उनकी रचनाओं की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पडता। हिन्दी (या उर्दू) के इस महान रचनाकार का जन्म फिल्लौर (पंजाब) में 15 जून 1927 को हुआ था।


उन्होने काव्य और गद्य दोनों ही लिखे और खूब लिखे। उनकी भाषा अरबी फारसी से भरी हुई नक़ली और किताबी उर्दू न होकर अमीर खुसरो की हिन्दी और हिन्दवी की याद दिलाने वाली वह देशज उर्दू भाषा है जो हर उस व्यक्ति को सहज ही अपनी लगेगी जिसकी मातृभाषा उर्दू (या हिन्दी) है। इतनी मधुर और काव्यमयी उर्दू कि आपको लश्करी ज़ुबान का अक्खडपन ढूंढे नहीं मिलेगा।

इंशा का वास्तविक नाम शेर मुहम्मद खान था। उनकी रचनाओं में निम्न के नाम उल्लेखनीय हैं:
इस बस्ती के इक कूचे में - काव्य संग्रह
चान्द नगर - काव्य संग्रह
नगरी नगरी फिरा मुसाफिर - यात्रा संस्मरण
आवारागर्द की डायरी - यात्रा संस्मरण
खत इंशा जी के - पत्र संकलन
उर्दू की आखिरी किताब - हास्य व्यंग्य

इंशा जी का अंतकाल 11 जनवरी 1978 को हुआ।


सुनिये इंशा जी का गीत "ये बातें झूठी बातें हैं" गुलाम अली के स्वर में


इब्न-ए-इंशा का गीत "सब माया है" सलमान अलवी के स्वर में


इब्न-ए-इंशा की कहानी "बहादुर अल्लाह दित्ता" ज़िया मोहिउद्दीन की आवाज़ में
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* हम रात बहुत रोये - 15 जून
* कल चौदहवीं की रात थी - जगजीत सिंह
* सब माया है - सलमान अलवी
* यह बच्चा कैसा बच्चा है

वीरों का कैसा हो वसंत - सुभद्रा कुमारी चौहान

आइये सुनते हैं तेजस्वी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की रचना "वीरों का कैसा हो वसंत" डॉ. मृदुल कीर्ति के स्वर में



Dr. Mridul Kirti - डॉ. मृदुल कीर्ति
आ रही हिमालय से पुकार,
है उदधि गरजता बार-बार,
प्राची पश्चिम भू-नभ अपार,

सब पूछ रहे हैं दिग्‌-दिगन्त,
वीरों का कैसा हो वसंत?
फूली सरसों ने दिया रंग,
मधु लेकर आ पहुँचा अनंग,

वधु वसुधा पुलकित अंग-अंग,
हैं वीर वेश में किन्तु कन्त,

वीरों का कैसा हो वसंत?

भर रही कोकिला इधर तान,
मारू बाजे पर उधर गान,
है रंग और रण का विधान,
मिलने आए हैं आदि अंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

गल बाहें हों या हो कृपाण,
चल चितवन हो या धनुषबाण,
हो रस विलास या दलित त्राण,
अब यही समस्या है दुरंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

कह दे अतीत अब मौन त्याग
लंके तुझमें क्यों लगी आग?
ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग जाग,
बतला अपने अनुभव अनन्त!

वीरों का कैसा हो वसंत?

हल्दी घाटी के शिला खंड,
ऐ दुर्ग सिंहगढ़ के प्रचंड,
राणा सांगा का कर घमंड,
दे जगा आज स्मृतियां ज्वलंत,

वीरों का कैसा हो वसंत?

भूषण अथवा कवि चन्द नहीं,
बिजली भर दे वह छंद नहीं,
है कलम बंधी स्वच्छंद नहीं,
फिर हमें बतावे कौन हंत!

वीरों का कैसा हो वसंत?

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* सुभद्रा कुमारी चौहान - विकिपीडिया
* वीरों का कैसा हो वसंत - शब्द
* सुभद्रा कुमारी चौहान - सेनानी कवयित्री की पुण्यतिथि
* 1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
* डॉ. मृदुल कीर्ति
* मृदुल कीर्ति - कविता कोश
* डॉ॰ मृदुल कीर्ति का साक्षात्कार

कुन्दन लाल सहगल - ऐ दिल ए बेक़रार झूम - शाहजहाँ (1946)


खुमार बाराबंकवी के शब्द नौशाद का संगीत