नव वर्ष की शुभकामनाएं!
Posted On गुरुवार, 31 दिसंबर 2009 at by Smart Indianआप सब को सपरिवार नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं!
एक पिछली पोस्ट में मैंने एक मर्मस्पर्शी राजस्थानी लोकगीत का ऑडियो पोस्ट किया था और राजस्थान के श्रोताओं से उसके शब्द (lyrics) और अर्थ बताने का अनुरोध किया था. किशोर चौधरी ने आगे बढ़कर इस गीत के शब्द, अर्थ और भाव ईमेल से भेजे हैं. मैं उनका आभारी हूँ और गीत के बारे में सम्पूर्ण जानकारी यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ. साथ ही गीत का ऑडियो एक बार फिर से रख रहा हूँ ताकि पहली बार में भावार्थ न समझने वाले मेरे जैसे श्रोता भी इस बार इस हृदयस्पर्शी कारुणिक गीत को पूर्णता से अनुभव कर सकें. यहाँ से आगे किशोर चौधरी के शब्द:
ये लोकगीत एक नवविवाहिता गा रही है, वह माँ और भाईयों से मर्मस्पर्शी शिकायत कर रही है कि सात भाईयों में एक बहन थी फिर भी मुझे इतनी दूर धोरे में अर्थात सुनसान स्थान पर क्यों ब्याह दिया है. यहाँ का जीवन कठिन है पहनने को जूते नहीं हैं और सर ढकने को कपड़ा और ससुराल वाले पीहर जाने के लिए गाड़ी का किराया भी नहीं देते हैं . वह आक और पीपल का आभार व्यक्त कर रही है कि उसके पत्तों के कारण वह पाँव और सर ढक पाती है.
सातों रे भाईड़ों री अम्मा एक बेनड़की
ओ माँ मैं सात भाईयों की एक बहन हूँ
अळगी क्यों, मिन्हों धोरुडे में क्यों परणाई रे अम्मा
दूर क्यों, मुझे धोरे में क्यों ब्याह दिया है
मिन्हों देवे क्यों नी गाडकी रो भाड़इयो
मुझे देते क्यों नहीं गाड़ी का भाड़ा (किराया) भी
पगे रे उभराणी बीरा थारोड़ी बेनड़की
भाई तुम्हारी बहन नंगे पाँव है
पगे रे उभराणी अम्मा एक बेनड़की
नंगे पाँव है माँ, एक बहन
अळगी क्यों, मिन्हों धोरुडे में क्यों परणाई रे अम्मा
दूर क्यों, मुझे धोरे में क्यों ब्याह दिया है
मिन्हों देवे क्यों नी गाडकी रो भाड़इयो
मुझे देते क्यों नहीं गाड़ी का भाड़ा भी
पगे रे उभराणी बीरा थारोड़ी बेनड़की
भाई तुम्हारी बहन नंगे पाँव है
अरे बांधों हूँ आकडिये वाला पोन हूँ अम्मा
मैं पांवों में आक के पत्ते बांधती हूँ , माँ
बांधों रे आकडिया तान्जां पोन रे अम्मा
ओ आक तेरे पत्ते बांधती हूँ, ऐ माँ
मिन्हों देवे क्यों नी गाडकी रो भाड़इयो
मुझे देते क्यों नहीं गाड़ी का भाड़ा भी
सिरडे उगाड़ी बीरा थारोड़ी बेनड़की
नंगे सिर है भाई तुम्हारी बहन
सिरडे उगाड़ी अम्मा एक बेनड़की
नंगे सिर है माँ, एक बहन
ओढ़ो रे पीपळीये वाला पोन रे अम्मा
पीपल के पत्ते ओढ़ती हूँ अमा
ओढ़ो रे पीपळीया तांजा पोन रे अम्मा
ओ पीपल तेरे पत्ते ओढ़ती, ऐ माँ
मिन्हों देवे क्यों नी गाडकी रो भाड़इयो
मुझे देते क्यों नहीं गाड़ी का भाड़ा भी
God Bless You Kishore!
खुबसूरत रचना आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................
aabhar aap donon ka anuragji aur kishoreji.its awesome.
अनुराग भाई ,
राजस्थानी भाषा की मिठास से रस और बढ़ गया ..आप ने चुन कर यह सुन्दर लोक गीत
सुनवाया... उसका आभार
इस से पहले की प्रविष्टी की कविता भी बढ़िया लगी और एक बार पुन:
आपके समस्त परिवार को ,
नव - वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं भी प्रेषित कर रही हूँ
बहुत स्नेह सहीत ,
- लावण्या
मुझे आपका ये ऑडियो ब्लॉग का स्वरूप बहुत अच्छा लगा. कुछ रचनाएँ हैं जिन्हें मैं सहेजना चाहता था अब उनको एक ठिकाना मिल सकेगा.
आभार
बहुत मर्मस्पर्शी गीत.आप दोनों का आभार.
प्रतीतात्मक मर्मस्पर्शी भावाव्यक्ति...
ये लोक गीतों की जान होती है, वे पीड़ा को सामूहिक अभिव्यक्ति के अवसर में बखूबी बदल देते हैं...
आभार...
शुभकामनाओं सहित....
aap jaise log jo aisa nek kam krte h..
main bhagwaan se dua krta hu ki unhe din duni tarkki mile...humari duaye aap maati ke sapooto ke sath h..
wah bhai wah....dil khus ho gya