शनिवार, 19 दिसंबर 2009

अण्डा - बाबा नागार्जुन

बाबा नागार्जुन अपनी तेजस्वी रचनाओं और उनमें निहित देशव्यापी समस्याओं के कुशल चित्रण के लिए जाने जाते हैं. यहाँ प्रस्तुत है पचास के दशक में रची उनकी एक रचना "अंडा"



अण्डा - बाबा नागार्जुन

पाँच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया,बाकी रह गये चार

चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गये तीन

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गये वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच गये दो

दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया एक

एक पूत भारतमाता का, कन्धे पर है झन्डा
पुलिस पकड कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा

सम्बंधित प्रविष्टियाँ:
1. बाबा नागार्जुन की तेजस्वी रचना मन्त्र (ॐ)
2. एक दुर्लभ और मार्मिक राजस्थानी लोकगीत सुनें

6 टिप्‍पणियां:

  1. यह जब भी पढता हूं...
    हर बार वही आनंद तारी हो जाता है...

    साथ ही उनकी और भी चुटहिया रचनाएं याद आने लगती हैं...

    आभार...

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  2. बहुत ही बेहतरीन रचना
    बहुत बहुत आभार

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  3. नया अनुभव...शानदार रचनात्मकता.

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  4. बेहतरीन रचना पढ़वाई स्मार्ट जी। देखिए अण्डे का फ़ण्डा उस ज़माने में भी था हा हा।

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