मंगलवार, 22 अक्तूबर 2013

मीरा के प्रभु गिरधर नागर

कोई कहियो रे प्रभु आवन की
आवन की मनभावन की
वे नहिं आवें लिख नहिं भेजें
बाण पड़ी ललचावन की
ये दो नैण कह्यो नहिं मानै
नदियां बहै जैसे सावन की
कहा करूँ कछु नहिं बस मेरो
पांख नहीं उड़ जावन की
मीरा कहै प्रभु कब रे मिलोगे
चेरी भई तोरे दांवन की
(~ मीरा बाई)

आइये सुनें मीरा बाई का यह पद हुसेन बंधुओं के मधुर स्वर में

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें