एक अलग सा राजस्थानी लोकगीत

यूरोप के रोमा (जिप्सी) बंजारों के बारे में बने एक वृत्तचित्र में राजस्थान के बंजारों का गाया हुआ यह लोकगीत दो रूपों में सुनने को मिला था. शब्द के बोल कुछ-कुछ समझ में आते हैं और ऐसा लगता है जैसे कि सात भाइयों की एक अकेली बहन की किसी लोककथा का ज़िक्र हो रहा है. जब पहली बार सुना तब से ही मुझे इस गीत का अर्थ जानने की उत्सुकता रही थी. आप भी सुनिए.  अर्थ समझ न भी आये तो भी शायद सुनना अच्छा लगे. यदि आप में से किसी को समझ आये तो कृपया टिप्पणी में या ईमेल द्वारा बताने की कृपा करें. धन्यवाद!

[अपडेट: किशोर चौधरी के सौजन्य से इस गीत के बोल मिल गये हैं। पढने के उत्सुक जन यहाँ क्लिक करें। धन्यवाद किशोर!]

सातों रे - खंड १


सातों रे - खंड २