चीन के तिआनमान चौक पर ४ जून १९८९ को हुए नरसंहार के बारे में लिखते समय बाबा नागार्जुन की पंक्ति अनायास ही ध्यान आ गयी थी. उस पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी ने उसी गीत की कुछ और पंक्तियाँ भी लिख दी थीं, उनका बहुत आभारी हूँ.
साहित्य में मेरा कोई विशेष अध्ययन नहीं है. जो किताबें मिलती हैं उन्हें पढने में विशेष रूचि नहीं होती है और जिन किताबों को ढूंढ रहा होता हूँ वे दुर्लभ होती जा रही हैं. फिल्मों के बारे में भी मेरा अनुभव कुछ अलग ही तरह का है. यदि कोई फिल्म मुझे पसंद आ जाए तो यह तय है कि वह फ्लॉप ही रही होगी. फिर भी अच्छी और ज़रा हट के बनी फिल्मों को देखने का लोभ संवरण नहीं कर पाता हूँ भले ही मेरे देखने भर से उस फिल्म का भविष्य खतरे में पड़ जाए. अच्छी फिल्में सदा ही बनती रही हैं - फर्क बस इतना है कि उन्हें देख पाने के लिए नसीब अच्छा होना चाहिए. पिछले कुछ वर्षों में भी कई लाजवाब फिल्में देखने को मिलीं. उन्हीं में से एक थी स्ट्रिंग्स. फिल्म अच्छी थी - कथावस्तु, पृष्ठभूमि, चित्रांकन और संगीत सभी दृष्टियों से. जो लोग भारत में रहते हुए भारतीय संस्कृति के मूल से कट चुके हैं उन्हें फिल्म की कथा अपारंपरिक लग सकती है - थोडा असहज भी कर सकती है. निर्देशन के बाद इस फिल्म में सबसे सशक्त पक्ष था संगीत का. असम के जुबीन गर्ग (बोडोठाकुर) के संगीत में सभी गाने मुझे इतने सुन्दर लगे कि मैंने शायद एक-एक गीत को हज़ार बार सुना होगा. संजय झा के निर्देशन में महाकुम्भ की पृष्ठभूमि में बनी इस फिल्म में जब मैंने बाबा नागार्जुन जी की वह रचना "मंत्र" सुनी तभी से इसके बारे में और जानने की इच्छा हुई. पता लगा कि बाबा ने यह रचना १९६९ में लिखी थी और १९७७ में इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था.
शायद आपको पसंद आये, इसी उम्मीद से उसका ऑडियो लगा रहा हूँ. गीत की जानकारी: स्वर: अंगराग मोहंता, सौरेन रॉयचौधरी और जुबीन गर्ग, रचयिता: बाबा नागार्जुन, फिल्म: स्ट्रिंग्स - बाउंड बाइ फेथ
मंत्र (ॐ) बाबा नागार्जुन (पूरी रचना)
ॐ शब्द ही ब्रह्म है... ॐ शब्द् और शब्द और शब्द
ॐ प्रणव, ॐ नाद, ॐ मुद्रायें, ॐ वक्तव्य, ॐ उदगार्, ॐ घोषणाएं
ॐ भाषण... ॐ प्रवचन...
ॐ हुंकार, फटकार, ॐ शीत्कार
ॐ फुसफुस, फुत्कार, ॐ चीत्कार
ॐ आस्फालन, इंगित, ॐ इशारे
ॐ नारे और नारे और नारे
ॐ सब कुछ, सब कुछ, ॐ सब कुछ
ॐ कुछ नहीं, कुछ नहीं, ॐ कुछ नहीं
ॐ पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग
नमक, तेल, हल्दी, जीरा, हींग
ॐ कोयला, इस्पात, ॐ पेट्रोल
ॐ हमी हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल
ॐ मूस की लेड़ी, कनेर के पात
ॐ डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात
ॐ इदमान्नं, इदमापः इदमज्यं, इदं हविः
ॐ यजमान, ॐ पुरोहित, ॐ राजा, ॐ कविः
ॐ क्रांतिः क्रांतिः क्रांतिः सर्वत्र क्रान्ति:
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः सर्वत्र शांतिः
ॐ भ्रांतिः भ्रांतिः भ्रांतिः सर्वत्र भ्रांतिः
ॐ बचाओ बचाओ बचाओ
ॐ हटाओ हटाओ हटाओ
ॐ घेराव घेराव घेराव
ॐ निभाओ निभाओ निभाओ
ॐ दलों में एक दल अपना दल
ॐ अंगीकरण, शुद्धिकरण, राष्ट्रीयकरण
ॐ मुष्टिकरण, तुष्टिकरण, पुष्टिकरण
ॐ ऎतराज़, आक्षेप, अनुशासन
ॐ गद्दी पर आजन्म वज्रासन
ॐ ट्रिब्यूनल, आश्वासन
गुटनिरपेक्ष, सत्तासापेक्ष जोड़-तोड़
ॐ बकवास, ॐ उदघाटन
ॐ मारण मोहन उच्चाटन
ॐ छल-छंद मिथ्या होड़महोड़
ॐ काली काली काली महाकाली
ॐ मार मार मार, वार न जाय खाली
ॐ अपनी खुशहाली
ॐ दुश्मनों की पामाली
ॐ मार, मार, मार, मार
ॐ अपोजीशन के मुंड बनें तेरे गले का हार
ॐ ऎं ह्रीं क्लीं हूं आंग
ॐ हम चबायेंगे तिलक और गाँधी की टांग
ॐ बूढे की आँख, छोकरी का काजल, तुलसीदल
बिल्वपत्र, चन्दन, रोली, अक्षत, गंगाजल
ॐ शेर के दांत, भालू के नाखून, मरघट का फोता
ॐ हमेशा हमेशा राज करेगा मेरा पोता
ॐ छूः छूः फूः फूः फट फिट फूट
ॐ शत्रुओं की छाती पर लोहा कूट
ॐ भैरों, भैरों, ॐ बजरंगबली
ॐ बंदूक का टोटा, पिस्तौल की नली
ॐ डॉलर डॉलर, ॐ रूबल रूबल, ॐ पाउंड पाउंड
ॐ साउंड साउंड, ॐ साउंड साउंड, ॐ साउंड साउंड
ॐ धरती, धरती, धरती, धरती, धरती, व्योम, व्योम, व्योम
ॐ अष्टधातुओं की ईंटो के भट्टे
महामहिम, महमहो उल्लू के पट्ठे
ॐ दुर्गा, दुर्गा, तारा, तारा
इसी पेट के अन्दर समा जाय सर्वहारा
हरिः ॐ तत्सत!
.
![]() |
| वैद्यनाथ मिश्र "यात्री" बाबा नागार्जुन |
शायद आपको पसंद आये, इसी उम्मीद से उसका ऑडियो लगा रहा हूँ. गीत की जानकारी: स्वर: अंगराग मोहंता, सौरेन रॉयचौधरी और जुबीन गर्ग, रचयिता: बाबा नागार्जुन, फिल्म: स्ट्रिंग्स - बाउंड बाइ फेथ
मंत्र (ॐ) बाबा नागार्जुन (पूरी रचना)
ॐ शब्द ही ब्रह्म है... ॐ शब्द् और शब्द और शब्द
ॐ प्रणव, ॐ नाद, ॐ मुद्रायें, ॐ वक्तव्य, ॐ उदगार्, ॐ घोषणाएं
ॐ भाषण... ॐ प्रवचन...
ॐ हुंकार, फटकार, ॐ शीत्कार
ॐ फुसफुस, फुत्कार, ॐ चीत्कार
ॐ आस्फालन, इंगित, ॐ इशारे
ॐ नारे और नारे और नारे
ॐ सब कुछ, सब कुछ, ॐ सब कुछ
ॐ कुछ नहीं, कुछ नहीं, ॐ कुछ नहीं
ॐ पत्थर पर की दूब, खरगोश के सींग
नमक, तेल, हल्दी, जीरा, हींग
ॐ कोयला, इस्पात, ॐ पेट्रोल
ॐ हमी हम ठोस, बाकी सब फूटे ढोल
ॐ मूस की लेड़ी, कनेर के पात
ॐ डायन की चीख, औघड़ की अटपट बात
ॐ इदमान्नं, इदमापः इदमज्यं, इदं हविः
ॐ यजमान, ॐ पुरोहित, ॐ राजा, ॐ कविः
ॐ क्रांतिः क्रांतिः क्रांतिः सर्वत्र क्रान्ति:
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः सर्वत्र शांतिः
ॐ भ्रांतिः भ्रांतिः भ्रांतिः सर्वत्र भ्रांतिः
ॐ बचाओ बचाओ बचाओ
ॐ हटाओ हटाओ हटाओ
ॐ घेराव घेराव घेराव
ॐ निभाओ निभाओ निभाओ
ॐ दलों में एक दल अपना दल
ॐ अंगीकरण, शुद्धिकरण, राष्ट्रीयकरण
ॐ मुष्टिकरण, तुष्टिकरण, पुष्टिकरण
ॐ ऎतराज़, आक्षेप, अनुशासन
ॐ गद्दी पर आजन्म वज्रासन
ॐ ट्रिब्यूनल, आश्वासन
गुटनिरपेक्ष, सत्तासापेक्ष जोड़-तोड़
ॐ बकवास, ॐ उदघाटन
ॐ मारण मोहन उच्चाटन
ॐ छल-छंद मिथ्या होड़महोड़
ॐ काली काली काली महाकाली
ॐ मार मार मार, वार न जाय खाली
ॐ अपनी खुशहाली
ॐ दुश्मनों की पामाली
ॐ मार, मार, मार, मार
ॐ अपोजीशन के मुंड बनें तेरे गले का हार
ॐ ऎं ह्रीं क्लीं हूं आंग
ॐ हम चबायेंगे तिलक और गाँधी की टांग
ॐ बूढे की आँख, छोकरी का काजल, तुलसीदल
बिल्वपत्र, चन्दन, रोली, अक्षत, गंगाजल
ॐ शेर के दांत, भालू के नाखून, मरघट का फोता
ॐ हमेशा हमेशा राज करेगा मेरा पोता
ॐ छूः छूः फूः फूः फट फिट फूट
ॐ शत्रुओं की छाती पर लोहा कूट
ॐ भैरों, भैरों, ॐ बजरंगबली
ॐ बंदूक का टोटा, पिस्तौल की नली
ॐ डॉलर डॉलर, ॐ रूबल रूबल, ॐ पाउंड पाउंड
ॐ साउंड साउंड, ॐ साउंड साउंड, ॐ साउंड साउंड
ॐ धरती, धरती, धरती, धरती, धरती, व्योम, व्योम, व्योम
ॐ अष्टधातुओं की ईंटो के भट्टे
महामहिम, महमहो उल्लू के पट्ठे
ॐ दुर्गा, दुर्गा, तारा, तारा
इसी पेट के अन्दर समा जाय सर्वहारा
हरिः ॐ तत्सत!
.

रौद्र रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर! रोचक और जानकारी पूर्ण पोस्ट!
जवाब देंहटाएंबढियां है ,धन्यवाद प्रस्तुति हेतु .
जवाब देंहटाएंवाह...........लाजवाब पोस्ट और बाबा नागार्जुन की कालजयी रचना .................... बहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंपुनश्चः हरि ॐ तत्सत्।
जवाब देंहटाएंगीत पहले सुन चुका हूँ। यह गीत हमेशा प्रासंगिक रहेगा, जब तक क्रान्तियों के नाम पर धोखा होता रहेगा।
जवाब देंहटाएंकमाल ...बस क्या कहुं? आपने बहुत ही शानदार जानकारी दी है. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
नागार्जुन जी ने लिखा है तो कोई महान चीज ही लिखी होगी। सटायर जबरदस्त लगता है। पर पूरा सन्दर्भ समझ नहीं आ रहा। अगर वे किसी वाद की वकालत में कह रहे हैं, तब मामला झंझट का हो जाता है।
जवाब देंहटाएंपाण्डेय जी,
जवाब देंहटाएंइस गीत की एक-एक पंक्ति भारतीय राजनैतिक परिदृश्य का सफल चित्रण करती है. चाहे विभिन्न दलों के "क्रान्ति, शान्ति, भ्रान्ति" के "वक्तव्य, उदगार्, घोषणाएं" हों चाहे हर स्वार्थी, अयोग्य और भ्रष्ट नेता का "दलों में एक दल अपना दल" हो, चाहे विभिन्न वंशों के "गद्दी पर आजन्म वज्रासन" की बात हो और चाहे हर चुनाव-नतीजे के बाद होने वाली "गुटनिरपेक्ष, सत्तासापेक्ष जोड़-तोड़" की बात हो या फिर भ्रष्टाचार की राजनीति से जमाये गए "अष्टधातुओं की ईंटो के भट्टे" हों या प्रशासन की पंगुता और पद की गरिमा के लिए नितांत अयोग्य "महामहिम, महमहो उल्लू के पट्ठे" की बात हो, सब कुछ आज भी उतना ही कड़वा सत्य है जितना लिखे जाने के समय था.
खादी पहनकर कॉकटेल सूतने और पार्टी-फंड के नाम पर हत्यारों से वसूली करने वालों के लिए "हम चबायेंगे तिलक और गाँधी की टांग" से बेहतर कथन क्या हो सकता है?
आपातकाल की "काली महाकाली" को समर्पित "अपोजीशन के मुंड बने तेरे गले का हार" पंक्ति हो या "हम देखते रहेंगे" प्रधानमंत्री के लिए लिखी गयी "हमेशा हमेशा करेगा राज मेरा पोता" जैसी पंक्तियाँ हों, ज्योतिषियों को इस गीत की १९६९ में लिखी पंक्तियों में की गयी भारतीय राजनीति की अचूक भविष्यवाणियों से बहुत कुछ सीखने की गुंजाइश है.
मेरी प्रिय पंक्ति "ॐ दुर्गा, दुर्गा, दुर्गा, तारा, तारा, तारा, इसी पेट के अन्दर समा जाय सर्वहारा" की गहराई को समझने के लिए बाबा नागार्जुन के जीवन-पथ को ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है. एक परम्परावादी और सुसंस्कृत ब्राह्मण परिवार में जन्मे बाबा बड़े होकर बौद्ध धर्म में इतना डूब गए कि अपना नाम, काम, जीवन सब उसे दे दिया. बाद में "बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय" के उद्देश्य ने उन्हें भारत में साम्यवादी आन्दोलन के संस्थापक अगुआओं में शुमार दिलाई. और भ्रष्ट, झूठे, जिद्दी और आथौरितेरिअन कम्युनिस्टों की कथनी-करनी का भेद देखकर वहां भी उनका मोहभंग हुआ.
"दुर्गा -> तारा -> सर्वहारा" में एक महान कवि ही नहीं एक विचारक, चिन्तक, राजनैतिक और पतन से दुखी एक महान व्यक्तित्व की आवाज सुनाई देती है.
सर्वहारा का नाम लेकर उन्हीं को पचाने वाले को ‘सलाम’ करते हैं बाबा नागार्जुन।
जवाब देंहटाएंOM SHANTI SHANTI SHANTI ........ BABA NAGARJUN KI JAI
जवाब देंहटाएंबात बात में बहुत जानकरी प्राप्त कर ली..आभार. बेहतरीन पोस्ट.
जवाब देंहटाएंसुन्दर! रोचक और जानकारी।आभार।
जवाब देंहटाएंBahut achchi lagi aapki yah prastuti.Badhai.
जवाब देंहटाएंआपकी ऊपर वाली टिपण्णी अपने आप में एक पोस्ट पर भारी पड़ती है. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबाबा नागार्जुन की यह कविता बहुत क्रान्तिकारी है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मान्यवर नमस्ते।
जवाब देंहटाएंमुझे बाबा नागार्जुन की मेजबानी का
कई बार सौभाग्य मिला है।
बाबा के बारे में जानकारी
और उनकी मन्त्र कविता को
प्रकाशित करने के लिए,
धन्यवाद।
आज
http://uchcharan.blogspot.com/
पर इन्टर-नेट नामक पोस्ट लगाई है।
अमरीका शब्द पर आपका लिंक लगाया है।
ये रचना और इस तरह की रचना पहली बार सुनी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
अद्भुत पोस्ट अनुराग जी...
जवाब देंहटाएंमुझे इसका mp3 भेज पायेंगे क्या मेरे ई-मेल पर?
नेट की कच्छप गति सुनने नहीं दे रही ठीक से।
अद्भुद अनुराग भाई अद्भुद !!!
जवाब देंहटाएंआपका किन शब्दों में आभार व्यक्त करूँ समझ नहीं पा रही...
यह मेरा दुर्भाग्य है की भारत वर्ष में हूँ,साहित्य से भी संपर्क रहा पर यह कविता पहली बार पढने और उसमे भी सुनने का सुअवसर मिला है...
आपकी बातों से शब्दशः सहमत हूँ...सबकुछ आपने कह ही दिया इसलिए असके आगे और कुछ कहने की गुंजाईश नहीं दीखती...
ऐसी कालजयी रचनाएँ सदैव ही प्रासंगिक रहेंगी.
फिल्मो की बात आपने अच्छी कही....जिस फिल्म को लोग फ्लॉप कहकर नकार देते हैं,अक्सर ऐसी ही फिल्मे मुझे अच्छी लगती हैं...मुझे लगता है जिस फिल्म(कहानी) को देखकर मन मस्तिष्क को कुछ खुराक न मिले तो वह कहानी ही क्या...
इस अद्वितीय आलेख के लिए आपका बहुत बहुत आभार....
आप कैसे हैं? आपकी प्रस्तुति के बारे में क्या कहूँ, जैसे मेरे होंट सिल गये हैं...
जवाब देंहटाएंअनुराग जी,
जवाब देंहटाएंऊपर जो भी लिखा गया है, वो एक्दम सच है और कुछ हो भई नही सकता (जैसा कि अक्सर समझा जाता है, गाल बजाना हमारे संस्कारों में शामिल हो गया है)।
बाबा नागार्जुन की कालजयी कविता का पुनः पाठ अहोभाग्य।
आपको और डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मंयक" साहब को कोटिशः धन्यवाद
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
अमर कालजयी अद्भुत सब से अलग सुन्दर रचना के लिये साधुवाद्
जवाब देंहटाएंनागार्जुन की यह कविता भारतीय राजनीति पर करारा व्यंग्य करती है. लेकिन केवल इसी कारण इसे एक महान रचना करार नहीं दिया जाना चाहिए. यदि यह रचना किसी ख्यातनाम कवि ने नहीं लिखी होती तो सभवतः आलोचक इसमें कविता तत्व का अभाव भी ढूंढ लेते.
जवाब देंहटाएंयह एक अदभुत कविता है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
एक अनुपम रचना . . . .
जवाब देंहटाएंभव्य ...
और....दिव्य . . . .
बधाई .
शुक्रिया .
---मुफलिस---
bahut khoob anurag ji...
जवाब देंहटाएंis rachana se pahchan karane ka dhanyavaad
अनुराग जी baba nagarjun जी की ye kavita maine kabhi padhi ya suni nahi thi aur aaj पता नहीं कैसे यह २००९ की पोस्ट mere सामने आ गयी है. sach me bahut hi shandar पोस्ट है ye. bahut hi jabardast.
जवाब देंहटाएंबाबा नागार्जुन की इस अप्रतिम कविता को संगीत में ढाल कर पेश करना आसान काम नहीं है. रिदम के अंदर शब्दों का जो बाँट (संगीत की भाषा में बोल-बाँट)किया गया है, वह संगीतकार की योग्यता को दर्शाता है. गायकों की मेहनत साफ़ दिखाई दे रही है. सुर में गाते हुए पूरी नाटकीयता के साथ पेश करने में ऐसी कविताएँ सदा बड़ी चुनौती साबित होती हैं.
जवाब देंहटाएंहाँ, सुधार की भी अभी गुंजाइश है. एकाध जगह बोलों के बाँट को कुछ अधिक सार्थकता और निपुणता से नियोजित किया जा सकता था. अंत भी कुछ अलग ढंग से हो सकता था. यकायक कविता का खत्म हो जाना अटपटा लगता है.
बाबा नागार्जुन की इस अप्रतिम कविता को संगीत में ढाल कर पेश करना आसान काम नहीं है. रिदम के अंदर शब्दों का जो बाँट (संगीत की भाषा में बोल-बाँट)किया गया है, वह संगीतकार की योग्यता को दर्शाता है. गायकों की मेहनत साफ़ दिखाई दे रही है. सुर में गाते हुए पूरी नाटकीयता के साथ पेश करने में ऐसी कविताएँ सदा बड़ी चुनौती साबित होती हैं.
जवाब देंहटाएंहाँ, सुधार की भी अभी गुंजाइश है. एकाध जगह बोलों के बाँट को कुछ अधिक सार्थकता और निपुणता से नियोजित किया जा सकता था. अंत भी कुछ अलग ढंग से हो सकता था. यकायक कविता का खत्म हो जाना अटपटा लगता है.
बाबा नागार्जुन की इस अप्रतिम कविता को संगीत में ढाल कर पेश करना आसान काम नहीं है. रिदम के अंदर शब्दों का जो बाँट (संगीत की भाषा में बोल-बाँट)किया गया है, वह संगीतकार की योग्यता को दर्शाता है. गायकों की मेहनत साफ़ दिखाई दे रही है. सुर में गाते हुए पूरी नाटकीयता के साथ पेश करने में ऐसी कविताएँ सदा बड़ी चुनौती साबित होती हैं.
जवाब देंहटाएंहाँ, सुधार की भी अभी गुंजाइश है. एकाध जगह बोलों के बाँट को कुछ अधिक सार्थकता और निपुणता से नियोजित किया जा सकता था. अंत भी कुछ अलग ढंग से हो सकता था. यकायक कविता का खत्म हो जाना अटपटा लगता है.
-मुकेश गर्ग
बाबा नागार्जुन की इस अप्रतिम कविता को संगीत में ढाल कर पेश करना आसान काम नहीं है. रिदम के अंदर शब्दों का जो बाँट (संगीत की भाषा में बोल-बाँट)किया गया है, वह संगीतकार की योग्यता को दर्शाता है. गायकों की मेहनत साफ़ दिखाई दे रही है. सुर में गाते हुए पूरी नाटकीयता के साथ पेश करने में ऐसी कविताएँ सदा बड़ी चुनौती साबित होती हैं.
जवाब देंहटाएंहाँ, सुधार की भी अभी गुंजाइश है. एकाध जगह बोलों के बाँट को कुछ अधिक सार्थकता और निपुणता से नियोजित किया जा सकता था. अंत भी कुछ अलग ढंग से हो सकता था. यकायक कविता का खत्म हो जाना अटपटा लगता है.
-मुकेश गर्ग
बाबा नागार्जुन का सान्निध्य मुझे भी मिला है!
जवाब देंहटाएंवो कई बार मेरे यहाँ रहे हैं।
विचित्र, अद्भुत, झकझोरणी रचना। आभार। पढ़ने के बाद अभी YouTube पर कविता का फिल्मांकन देखा। अद्वीतीय।
जवाब देंहटाएंhttps://www.youtube.com/watch?v=-Eqe35Z8s7s
पूरी फिल्म देखने की इच्छा है। कहाँ मिलेगी?
राजेन्द्र गुप्ता जी, यदि फिल्म भारत में न मिले तो मैं आपको उधार भिजवा सकता हूँ। बस आपका पता चाहिए।
जवाब देंहटाएं